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दोस्त, मित्र, यार और न जाने किस-किस नाम से पुकारते हैं हम अपने मित्रों को। शायद यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हम सबसे ज़्यादा खुश होते हैं। न कोई उम्मीद होती है और न कोई डर कि मेरी बात से मित्र नाराज़ न हो जाय। यदि किसी बात पर गुस्सा आ भी जाता है, तो अगले ही पल वो हँसा भी देता है।
सच्चा मित्र कभी अपने दोस्त को दुखी नहीं देख सकता है। शायद खुश रहने का दूसरा नाम मित्रता है। जब दो पुराने मित्र साथ होते हैं, तो लगता है कि ज़माने भर की खुशियाँ मिल गयी हैं। यदि अचानक कभी स्कूल या कॉलेज का कोई मित्र सामने आ जाये, तो उस खुशी को शब्दों में बाँधना मुश्किल होगा।
पुराने समय में बचपन के मित्र बड़े होते-होते अपने जीवन में इतने व्यस्त हो जाते थे कि कब वो अलग हो गये, पता ही नहीं लगता था। मगर अब हमें इंटरनेट का धन्यवाद करना चाहिये, जिसने पुराने मित्रों को भी मिला दिया। यही वजह है कि हम दूर होते हुये भी अपने दोस्तो को करीब पाते हैं। किसी के पास यदि एक भी सच्चा मित्र है, तो उससे अधिक धनी व्यक्ति कोई नहीं है। एक सच्चा दोस्त ही बहुत है, हज़ार झूठे दोस्तों से।
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